खेती का तरीका – रोग प्रबंधन

बचाव इलाज से अच्छा होता है …

यह वाक्य कृषि में बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि बचाव से रोग लगने की संभावना कम होती है| इलाज बीमारी के आने के बाद की प्रक्रिया है, जब तक हम इलाज प्रारंभ करते हैं, तब तक कुछ प्रतिशत क्षति हो चुकी होती है|

वी एन आर नर्सरी की टीम समय-समय पर किसानों के बगीचों का भ्रमण करती है| यह बगीचे पूरे हिन्दुस्तान के 250 से अधिक जिलों में स्थित है, 20 प्रदेशों में स्थित यह जिले विभिन्न भौगोलिक एवं कृषि जलवायु क्षेत्रों में विद्यमान है इन बगीचों के भ्रमण के दौरान टीम अमरुद में लगने वाले विभिन्न कीटो एवं रोगों के संपर्क में आती है| कीटो एवं रोगों की पहचान, क्षति बचाव एवं निराकरण से संबंधित अपने अनुभव को हम इस पाठ में व्यक्त कर रहे हैं| जिससे किसानों को हमारे ज्ञान एवं अनुभव का लाभ मिल सके| यहाँ हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि किसी दुविधा की स्थिति में किसान भाई अपने क्षेत्र के कृषि विज्ञान केंद्र कृषि विश्वविद्यालय एवं उद्यानिकी अधिकारियों से अवश्य परामर्श करें |

वी एन आर नर्सरी की तकनीकी टीम ने लगभग 1000 बगीचों में भ्रमण के पश्चात अपने अनुभव साझा करने का प्रयास किया है| भ्रमण के दौरान हमने ये भी अनुभव किया कि अधिकांश कृषक, कृषि रसायन बेचने वाले दुकानदारों से सलाह करके उत्पादों का क्रय करते हैं और उन्हीं की बताई विधि और मात्रा उपयोग करते हैं इसका मुख्य कारण किसानों में कीट एवं रोगो तथा कृषि रसायनों के बारे में जानकारी का अभाव अथवा कम जानकारी का होना है|

हमे आशा है कि इस विषय पर प्रस्तुत  लेख \ जानकारी किसानो के ज्ञान का स्तर बढ़ायेगी|

कीटो एवं रोगों से बचाव के लिए निम्न आवश्यक है –

  • स्वच्छता / Sanitation
  • उपयुक्त जल से सिंचाई / Irrigation
  • खाद एवं उर्वरक का उपयोग / Manures & Fertilizer
  • स्वच्छ बगीचे में कीट एवं रोगों की संभावना सबसे कम है, स्वच्छता से अभिप्राय बगीचे के वातावरण से है, खरपतवार या अन्य प्रकार की अवाँछनीय वस्तुओ का बगीचा क्षेत्र में न होना एवं बगीचों की सीमाओं पर भी पूर्ण सफाई का होना है| यदा-कदा सिंचाई स्त्रोत से जल का रिसाव, स्थान विशेष पर खरपतवार को बढ़ावा देता है, ऐसे जल रिसाव को भी समय पर रोकना आवश्यक है|
  • सिंचाई का जल स्वस्थ हो और उसमें नमक की मात्रा 1000 टीडीएस से कम हो, कम या अधिक टीडीएस के कारण जड़ों द्वारा पोषक तत्व ग्रहण की क्रिया प्रभावित हो जाती है और पौधा कमजोर होता है|
  • पौधों को अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद एवं उचित मात्रा में उर्वरक देना भी आवश्यक है| खाद\कंपोस्ट पूरी तरह से सड़ी हुई और भुरभुरी हो जिससे उसमें कीट होने की संभावना न रहे, असंतुलित उर्वरक का उपयोग पौधे को कमजोर बनाता है और उसके रोग ग्रस्त होने की संभावना अधिक होती है|
  • यहां हम आपको अमरुद के पौधे एवं फल में मुख्य तौर पर लगने वाली बीमारियों के बारे में जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं|

प्रमुख रोग

  1. विल्ट
  2. एन्थ्रक्नोस
  3. कैंकर
  4. सूटी मोल्ड
  5. फाइटोप्थोरा
  6. स्टाइलर एंड रॉट
  7. सॉफ्ट वाटरी रॉट
  8. बोट्रीयोस्फेरिया रॉट
  9. सरकोस्पोरा लीफ स्पॉट
  10. अन्य रोग

अस्वीकरण / Disclaimer

  • यहां पर लिखे सामग्री का प्रस्तुतीकरण हमारे एवं वी एन आर बीही किसानों द्वारा साझा किये हुए अनुभव के आधार पर है|
  • हम यहां पर किसी रासायनिक फार्मूलेशन को किसी भी प्रकार से बढ़ावा देने का प्रयास नहीं कर रहे हैं|
  • किसी भी रसायन की गुणवत्ता एवं प्रयोग उसको बनाने एवं विपणन करने वाली कंपनी, संस्था की पूर्ण जिम्मेदारी है|
  • कृषक बंधु उपरोक्त रसायनों को खरीदने एवं प्रयोग करने से पहले संबंधित दुकान एवं कंपनी या संस्था से इसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करें|
  • किसी भी प्रकार की दुविधा होने पर किसान भाई – वी एन आर नर्सरी की तकनीकी टीम, कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विश्वविद्यालय, अन्य कृषि संस्थान एवं क्षेत्रीय उद्यानिकी विभाग से परामर्श करें|